झाझड़िया वंश के लोक देवता श्री पृथ्वीराज झाझड़िया का जन्म झाझड़िया वंश के जाट कुल में हुआ तथा (झाझरिया)झाझड़िया वंश के लोगों ने झाझड़िया वंश के 12 गांव बसाएं गांव सोलाना,मेहरपुर ,क्यामसर,गोवला छोटा भड़ौदा, बड़ा भड़ौदा मटाना, मालास,हांसलसर,नाटास,देसूसर,फतेसरा पृथ्वीराज की बहन की गायों को तीसमा बराई के ले गए तथा पृथ्वीराज सिंह व तीसमा बराई के गिरोह बीच युद्ध हुआ उस उस युद्ध में पृथ्वीराज काशीष कट कर दी धरती पर गिर गया बिना शीश के पृथ्वीराज ने 53 बुराइयों को मौत के घाट उतार दिया और गायों की रक्षा करें

🙏श्री पृथ्वीराज झाझड़िया का परिचय
  
पिता—सालभान सिंह 
माता –श्रीमती सोनादेह(सोलादेह)
अस्त्र –तलवार, कटार ,भला ⚔️🚩🕉️
सवारी – घोड़ी की सवारी करते थे श्री पृथ्वीराज सिंह 
कुलदेवी माता –भवानी मां ( चंडी, रुद्राणी ,ब्राह्मणी, आदिशक्ति)
शिक्षा– गुरुकुल से शिक्षा ग्रहण की 6 वर्ष की आयु में

श्री पृथ्वीराज सिंह का जन्म माघ के महीने गुरुवर के दिन विक्रम सवंत 1287 को श्री सालभान सिंह एवं माता सोनादेह के घर मैं जन्मे थे और उनकी मृत्यु वैशाख बदी दूज विक्रम सवंत 1321 में हुई थी और पृथ्वीराज सिंह जी की बहन का नाम सुजलदेह था

श्री पृथ्वीराज का विवाह जाखड़ वंश के जाट कुल में जन्मी  सुनखत के साथ हुआ

🙏श्री पृथ्वीराज की बहन का विवाह

 बुआ सुजलदेह का विवाह मुंड वंश के जाट कुल में उगम सिंह के साथ गांव पिपराली में हुआ

               🕉 ओम श्री पृथ्वीराज देवाय नमः🚩🚩
              
              🙏🚩 जय जय झाझरिया कुल भानु
                     🚩🙏    गौ रक्षक हितकारी मानू🚩

🕉श्री पृथ्वीराज सिंह झाझरिया की पूजा तीन गोत्रों के कुल में होती है झाझड़िया, मुंड, जाखड़
दूज की धोक जाखड़ जाति के लगाते हैं तीज की धोक झाझड़िया लगाते हैं चौथ के की धोक मुंड गोत्र के लगाते हैं  क्योंकि पृथ्वीराज का विवाह जाखड़ कुल वंश में हुआ था इसलिए जाखड़ कुल इनको पूजा व धोक लगाई जाती  है और पृथ्वीराज सिंह की बहन का विवाह मुंड गोत्र में हुआ था इसलिए इनकी मुंड गोत्र में पूजा व धोक लगाई जाती है और पृथ्वीराज सिंह जी झाझड़िया होने के नाते झाझड़िया कुल के लोग इनको धोक लगाते और पूजा करते हैं🙏


झाझड़िया वंश के लोगों ने शुरुआत में झाझड़िया  वंश के 12 गांव बताएं जिनका में  विवरण निम्न है

1- गांव मालास विक्रम सावंत 1321 में
2- गांव मटाना विक्रम सावंत 1329 में 
3- गांव सोलाना विक्रम संवत 1332 में 
4- गांव छोटा भड़ौदा विक्रम संवत 1340 में 
5- गांव बड़ा भड़ौदा विक्रम सवंत 1362 में 
6- गांव हांसलसर विक्रम सावंत 1552 मे 
7- गांव नाटक विक्रम सावंत 1408 मे
8- गांव गोवला विक्रम सवंत 1463 में
9- गांव महरपुर विक्रम सवंत 1402 में 
10- गांव देसूसर विक्रम सावंत 1435 मे
11- गांव फतेसरा विक्रम सवंत 1484 मे
12- गांव क्यामसर विक्रम संवत 1645 मे

       श्री पृथ्वीराज देवाय एवं बहन सुजलदेह देवाय
लोक देवता पृथ्वीराज सिंह झाझड़िया का इतिहास

पृथ्वीराज का जन्म मां के महीने गुरुवार के दिन विक्रम सवंत 1287 को झाझड़िया वंश के जाट कुल में इनका जन्म हुआ था इनकी मृत्यु वैशाख बदी दूज विक्रम संवत 1321 में हुई थी  यह सालवान जी के लड़के थे सालवान जी की एक पुत्री थी जिनका नाम सुजलदेह रखा गया सुजलदेह का विवाह उगम सिंह मुंड के साथ हुआ जो गांव पिपराली के रहने वाले थे पृथ्वीराज सिंह का विवाह जाखड़ कुल में जन्मी सुनखत के साथ हुआ एक बार पृथ्वीराज सिंह अपनी बहन सुजलदेह को ससुराल से लाने के लिए पिपराली गए थे तब वहां पर इनको पता चला कि अपनी बहन की गायों को तीसमा बराई व उनके गिरोह ने चुरा ली है मेवों के डर के कारण गांव वाले कुछ बोल नहीं रहे हैं तब पृथ्वीराज सिंह ने कहा कि मैं ऐसा क्षत्रिय वीर नहीं जो डर जाऊंगा पहले में गायों को छुड़ाकर लाऊंगा फिर अपनी बहन को ससुराल से लेकर जाऊंगा पृथ्वीराज सिंह अपनी सफेद घोड़े पर और हाथ में तलवार लेकर उन गाय चोरों के पास पहुंचा तथा तब बेरीयो को ललकारा सारे गाय चोर घबरा गए और पृथ्वीराज सिंह का तीसमा बराई व गिरोह के बीच युद्ध भयंकर हुआ तथा पृथ्वीराजसिह अकेले थे दुश्मन संख्या में ज्यादा थे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और वह उन से लड़ते गए तथा वहां की पूरी भूमि को उन्होंने तीसमा बुराई व उनके गिरोह से सारी भूमि को रक्त से रंग दिया फिर पृथ्वीराज सिंह का शीश काटकर सिरोही में पड़ा फिर भी पृथ्वीराज सिंह ने बिना शीश के 53 बराईयों को मौत के घाट उतार दिया और सारे गायों को बचा लिया जहां पर पृथ्वीराज सिंह का शीश कट कर गिरा  वह गांव सिरोही आज भी मौजूद है जहां पर पृथ्वीराज सिंह के शीश की पूजा की जाती है 

और बिना शीश के घोड़े पर चढ़कर पृथ्वीराजसिंह अपनी घर की ओर प्रस्थान कर चले जब रास्ते में गांव मझाऊं मैं इनकी मोजड़ी अर्थात (जूती )पड़ी और वह गांव आज भी मौजूद है जहां पर मंदिर है और मोजड़ी की पूजा होती है और बिना शीश के चले तथा यह सब देखकर लोग चौक गए और जैसे ही पृथ्वीराजसिंह भड़ौदा कला में इनका धड़ गिरा और उनकी पत्नी ने पृथ्वीराज सिंह पृथ्वीराज सिंह ने बड़ौदा कला में आकर अपना देह त्याग दिया तथा यह सब देख कर सुनखत ने सिंगार किया और परिजनों के साथ वहां पर पहुंच गई और पति संग माता सुन खेत सती हुई तभी वहां पर है पृथ्वीराज सिंह की बहन सुजल दे आप पहुंच जाती है और उनके पास तुरंत अपनी चीता सजाती है और अपने कुलदेव अग्निदेव को समझते हुए उनका नाम लेती है और सूर्य देव ने उनके ऊपर किरण करीब तभी चिता बीज अग्नि प्रकट हुई और चारों तरफ महासती महासती की वाणी गूंजने लगी
           '''तभी बहन सुजल दे आई 
           तुरंत पास में चिता बनाई
          पीपल बरगद चंदन तुलसी 
          बैठ चिता पर बहना हुलसी
           कुल के देव अग्न को सुमरा 
           राम नाम सूरज तब तुमरा 
          सूर्य देव ने किरण सरसाई 
          चिता बीच अग्नि प्रकट आई 
         महासती महासती की बानी 
         करें देव आकाश से वाणी '''' 
फिर आकाशवाणी हुई और विधाता ने कहा कि जो तुम तीनों तुम तीनों का कोई ध्यान लगाएगा उसके सारे कष्ट दूर होंगे ऐसा आशीर्वाद सुनाया और आप रिद्धि सिद्धि सर्वस्व के दाता होंगे ऐसे वर दे गए विधाता  तथा पृथ्वीरज सिंह की पूजा सच्चे मन से करता है तब उसको तीनों ताप नष्ट होते हैं और बांझ स्त्री को पुत्र प्राप्ति होती है तथा पृथ्वीराजसिंह के मंदिर में जडूला दाद मस्त झाड़ू लगाने से ठीक हो जाते हैं और नजर सेट फटकार कराओ पीलिया भाव पैर दारी अन्य सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं

जय दादा पृथ्वीराज झाझड़िया कुल वंश के उजियारे आप को शत-शत अभिनंदन  

 लेखक
चौधरी तेनसिंह झाझड़िया महाकाली भक्त
🚩भवानी मां कालका भक्त🚩
संदर्भ
 श्रेणियां:jat history jat peoplejat  history in Rajasthan jats from RajasthanJats
 

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