महाराष्ट्र में भाषा विवाद कैसे बढ़ता गया? जानें
इस बार क्यों हिंदी को लेकर गरमाई सियासत
के दल बिफ़र गए. महाराष्ट्र की मुख्य भाषा कौन सी है ?
अलग राज्य बने. इसके छह साल बाद जब बाला साहेब ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की तो उनका घोषित लक्ष्य था, बैंक की नौकरियों और कारोबार में दक्षिण भारतीयों और गुजराती लोगों के प्रभुत्व के ख़िलाफ़ मराठी मानुष को संरक्षण देना. मराठी भाषा, मराठी अस्मिता और मराठी लोगों के मुद्दे उठाकर शिवसेना ने महाराष्ट्र में गहरी पैठ बना ली. अस्सी के दशक में शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने दक्षिण भारतीयों और उत्तर प्रदेश और बिहार से आए प्रवासी उत्तर भारतीयों के खिलाफ लगातार रैली और आंदोलन किए. शिवसेना सत्ता में आई तो उसने दुकानों और संस्थानों में मराठी नेम प्लेट लगानी अनिवार्य कर दीं. बैंकों और सरकारी दफ़्तरों में भी मराठी में काम शुरू करवाय
शिवसेना ने जारी रखा भाषा का मुद्दा ,बाल ठाकरे के निधन के बाद भी शिवसेना ने ये मुद्दा अपने हाथ में रखा जो उसे बाकी पार्टियों से अलग बनाता रहा. उधर शिवसेना से अलग हुए बाला साहेब ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी ये मुद्दा मज़बूती से थामे रखा. शिवसेना, एमएनएस के लिए हर चुनाव में ये मुद्दा वोटों से भी सीधे तौर पर जुड़ा रहा. शिवसेना दो फाड़ हुई तो दोनों ही पक्षों ने इसे हाथ से जाने नहीं दिया.

मराठी भाषा को लेकर ताज़ा विवाद इस साल मार्च में शुरू हुआ जब आरएसएस के वरिष्ठ नेता सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा कि मुंबई की एक भाषा नहीं है और ये ज़रूरी नहीं है कि मुंबई आने वाले हर व्यक्ति को मराठी सीखनी पड़े. इस बयान पर विपक्षी महाविकास अघाड़ी के दल बिफ़र गए. ख़ुद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि मराठी राज्य की संस्कृति, इसे सीखना हर नागरिक का कर्तव्य है.
सरकार ने फैसला लिया वापस

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